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मई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रोजा इफ़्तार

आज रोजे का पांचवा दिन हैं सूरज सर पर चढ़ कर आग के गोले फेक रहा या अल्लाह रहम कर अपने बन्दों पर कहते हुए करीम मोची फुठपाथ पर बोरा बिछा कर अपनी दुकान सजाने लगा करीम उम्र यही कोई 55 साल मोची का काम कर के ही 30 साल से अपने परिवार का गुजारा कर रहे कभी कभी घर में फाके की नौबत भी आ जाती पर हिम्मत नही हारी बोरे पर पालिश की डिबिया लगाते हुए करीम सोच रहा था अब इस काम में कोई मुनाफा नही हैं दिन भर के 100 50 भी मुश्किल से आते हैं अब इस उम्र में कोई और धंधा कर भी नही सकता इन्ही उधेड़बुन में खोए करीम का ध्यान आवाजो से टुटा सर उठा कर देखा तो सामने बड़े से मॉल में शाम के इफ़्तार के लिए व्यवस्था हो रही थी,आँखे चमक उठी करीम की चलो आज शाम की इफ़्तार का तो इंतजाम हो गया एक दो रखे जुतो पर तेजी से हाथ चलाने लगा देखते देखते शाम ढल गयी सामने इफ़्तार के लिए लगे स्टाल के पास आस पास के दुकानदारों की भीड़ बढ़ने लगी थी करीम ने भी जल्दी से समान समेट बोरा बटोर कर किनारे रखा और पहुचं गया इफ़्तार के लिए नमकीन मीठा और कई चीजो से प्लेट भर कर जल्दी से भीड़ से बाहर आ गया अपने बोरे  तक पहुचने के लिए जल

एक दियां जला रखा हैं तूफान के आगे

हैवान बन जाते हो किसी इंसान के आगे कुछ और सोचो हिन्दू मुसलमान के आगे हमे मत सिखाओ ये पाठ राष्ट्रभक्ति का हमारी जान भी सस्ती हैं हिंदुस्तान के आगे ये कुर्सियां तुम्हे खाने को रोटी नही देंगी कल हाथ फैलाओगे किसी किसान के आगे हाँ चोर है वो जालिम जरूर कत्ल कर देना कल रोटियां चुराएगा किसी दुकान के आगे अब कब्र में भी चैन से ये सोने नही देंगे बस्तियां बना रहे हैं कब्रिस्तान के आगे खूब आंधिया चलाओ बवंडर पैदा करो एक दियां जला रखा हैं तूफान के आगे

मां की खीर

आ ज महेश का जन्मदिन था इसी साल महेश की शादी सीमा से हुयी थी और सीमा ने अपनी छोटी बहन के साथ मिलकर ढेर सारी तैयारी कर रखी थी उमेश सुबह जल्दी में ऑफिस चला गया था और शाम को जल्दी आने के लिए भी कह गया था, बीना यंहा वहां दौड़ दौड़ के सारी व्यवस्था कर रही थी और सहेलियों को शाम को आने के लिए फ़ोन भी कर रही थी, उधर कमरे में बीमार महेश की माँ उमादेवी बहु को देख रही थी और उसकी खुशी देख कर मन ही मन खुश हो रही थी उन्हें याद आ रहा था कि महेश के पापा के दुनिया छोड़ने के बाद हर जन्मदिन पर महेश उनकी बनाई खीर से ही मुहँ मीठा करता था पर इस बार नई बहू घर आयी थी तो खीर की बात कहना ठीक नही ये सोच कर उमादेवी चुप रही, देखते देखते शाम हो गयी और महेश भी घर आ गया सारे लोग जुटे थे बहु ने मेज पर बड़े से डिब्बे में शायद केक रखा था और काफी चीजे बनाकर पूरी मेज भर रखी थी, आते ही महेश बीना का हाथ बटाने लगा उमा देवी कमरे में लेटी थी और सोच रही थी की शायद बहु बेटे अपनी खुशी में खुश हैं उमादेवी के लिए यही बहुत था । खीर की बात चाह कर भी नही भू

यंहा हमारी बस्ती में खाने के लाले पड़े

1-: बंदिशें इतनी बढ़ी हर मोड़ पर ताले पड़े बंदिशों को तोड़ने में हाथ में छाले पड़े भुखमरी पर चर्चा पंचसितारा होटलों में यंहा हमारी बस्ती में खाने के लाले पड़े 2-: उदघाटन हुआ था बड़ा ढोल ताशे के साथ बच्चो में मूंगफली बटी थी बताशे के साथ आज तक बनी नही सड़क वो मेरे गांव की उम्मीद भी ख़त्म हो गयी तेरे झांसे के साथ 3-: नदी की लहर में बहते हुए उस पार चले गए सत्ता फिसली हाथ से कि सरकार चले गए जब देखो भरी धूल और जाले लगे हुए कहीं समझो मकान खाली हैं किरायेदार चले गए 4-: बड़ी जिम्मेदारी का बोझ लिए शहर गया फिर लौट के न कभी वो अपने घर गया जिसके पास थी गांव में बीघे भर जमीन सुना हैं वो भूख से फुटपाथ पर मर गया © देव शर्मा