आज रोजे का पांचवा दिन हैं सूरज सर पर चढ़ कर आग के गोले फेक रहा या अल्लाह रहम कर अपने बन्दों पर कहते हुए करीम मोची फुठपाथ पर बोरा बिछा कर अपनी दुकान सजाने लगा करीम उम्र यही कोई 55 साल मोची का काम कर के ही 30 साल से अपने परिवार का गुजारा कर रहे कभी कभी घर में फाके की नौबत भी आ जाती पर हिम्मत नही हारी बोरे पर पालिश की डिबिया लगाते हुए करीम सोच रहा था अब इस काम में कोई मुनाफा नही हैं दिन भर के 100 50 भी मुश्किल से आते हैं अब इस उम्र में कोई और धंधा कर भी नही सकता इन्ही उधेड़बुन में खोए करीम का ध्यान आवाजो से टुटा सर उठा कर देखा तो सामने बड़े से मॉल में शाम के इफ़्तार के लिए व्यवस्था हो रही थी,आँखे चमक उठी करीम की चलो आज शाम की इफ़्तार का तो इंतजाम हो गया एक दो रखे जुतो पर तेजी से हाथ चलाने लगा देखते देखते शाम ढल गयी सामने इफ़्तार के लिए लगे स्टाल के पास आस पास के दुकानदारों की भीड़ बढ़ने लगी थी करीम ने भी जल्दी से समान समेट बोरा बटोर कर किनारे रखा और पहुचं गया इफ़्तार के लिए नमकीन मीठा और कई चीजो से प्लेट भर कर जल्दी से भीड़ से बाहर आ गया अपने बोरे तक पहुचने के लिए जल
आ जाईये दरवाजा खुला हैं ........... आते रहियेगा अच्छा लगता हैं