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मां की खीर

महेश का जन्मदिन था इसी साल महेश की शादी सीमा से हुयी थी और सीमा ने अपनी छोटी बहन के साथ मिलकर ढेर सारी तैयारी कर रखी थी उमेश सुबह जल्दी में ऑफिस चला गया था और शाम को जल्दी आने के लिए भी कह गया था, बीना यंहा वहां दौड़ दौड़ के सारी व्यवस्था कर रही थी और सहेलियों को शाम को आने के लिए फ़ोन भी कर रही थी, उधर कमरे में बीमार महेश की माँ उमादेवी बहु को देख रही थी और उसकी खुशी देख कर मन ही मन खुश हो रही थी उन्हें याद आ रहा था कि महेश के पापा के दुनिया छोड़ने के बाद हर जन्मदिन पर महेश उनकी बनाई खीर से ही मुहँ मीठा करता था पर इस बार नई बहू घर आयी थी तो खीर की बात कहना ठीक नही ये सोच कर उमादेवी चुप रही, देखते देखते शाम हो गयी और महेश भी घर आ गया सारे लोग जुटे थे बहु ने मेज पर बड़े से डिब्बे में शायद केक रखा था और काफी चीजे बनाकर पूरी मेज भर रखी थी, आते ही महेश बीना का हाथ बटाने लगा उमा देवी कमरे में लेटी थी और सोच रही थी की शायद बहु बेटे अपनी खुशी में खुश हैं उमादेवी के लिए यही बहुत था । खीर की बात चाह कर भी नही भूल पा रही थी ,


तभी बहू मां के कमरे में आई और बोली मांजी ये साड़ी आपके लिए महेश लाये हैं पहन लीजिये और जल्दी से बाहर आ जाईये उमादेवी ने बहु बेटे का मन रखने के लिए साड़ी पहन ली और अनमने ढंग से बाहर आ गयी महेश को खीरखिला पाने की कसक मन में थी , तभी आगे बढ़ कर महेश और बीना ने मां का हाथ पकड़ा और मेज तक ले गए सामने बड़े से डिब्बे में केक ढंका हुआ था महेश ने कहा डिब्बा खोलो माँ उमादेवी ने भी बिना कुछ कहे डिब्बा हटा दिया चौक गयी उमा देवी और वहां खड़े लोग समझ नही पर रहे क्या हुआ उस डिब्बे के अंदर छोटी सी कटोरी में खीर रखी थी और लिखा था "माँ की खीर" बीना ने कहा माँ जी महेश ने सुबह ही कह दिया था कि मैं हरबार माँ की खीर से ही मुहँ मीठा करता हूँ और इस बार माँ बीमार हैं तो तुम खीर बना के रखना माँ के हाथ से ही खाऊंगा सभी के आंख में आंसू थे उमादेवी खड़े खड़े रो रही थी पता नही ख़ुशी के आंसू थे या बेटा बहु को गलत समझने के लिए पछतावे के,

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एक दियां जला रखा हैं तूफान के आगे

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