भारत छोड़ो आंदोलन
आज के दिन 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आगाज किया।
मार्च 1942 में जापान की सेना भारत के दरवाजे पर पहुंच गई। अमेरिका और मित्र राष्ट्रों के दवाब से चर्चिल ने बड़ी गंभीरता से भारत के सामने समझौते का एक सुझाव रखा। इस सुझाव को भारत तक पहुंचाने के लिए एक शाकाहारी और सादा जीवन व्यतीत करने वाले सोसलिस्ट अंग्रेज स्टेफर्ड क्रिप्स को भेजा गया। इसमें भारतवासियों के सामने जापान की हार के बाद एक ऐसी चीज देने का वचन दिया गया जो स्वतंत्रता के बराबर थी।जिसे डोमिनियन स्टेट की योजना कहा गया। इसमें मुस्लिम लीग के लिए यह गुंजाइश रखी गयी कि उनकी इस्लामी राज्य की मांग को भी पूरा किया जाएगा।
स्टेफर्ड क्रिप्स के आने के 48 घण्टे बाद महात्मा गांधी ने इस प्रस्ताव को कंगाल बैंक का आगामी तिथि का ब्लेंक चेक कहकर अस्वीकार कर दिया क्योंकि इसमें भारत के स्थायी विभाजन की बात कही गयी थी। गांधीजी ने क्रिप्स से कहा कि अगर आपके पास कोई ठोस सुझाव नहीं है तो आप अगले हवाई जहाज से वापस लौट जाएं।
क्रिप्स के जाने के अगले दिन सोमवार थ , इस दिन गांधीजी मौनव्रत रखते थे । लेकिन ये गांधीजी के जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्यशाली सोमवार था जब उनका मुंह तो मौन था पर अंतरात्मा मौन न होकर मुखर थी। वे अपनी अंतरात्मा से बातें करते हुए खुद को पराजित सा महसूस कर रहे थे। उनकी अंतरात्मा उनसे कह रही थी कि तुमको अपने सारे संसाधन सारे बौद्धिक उपकरण इकट्ठा करने होंगे। जीवन में ऐसा वक्त भी आता है जब इस तरह की असहायता और लाचारी का अनुभव होता है। लेकिन इस लाचारी और असहायता के अनुभव में ही तुमको अपनी ताकत के स्त्रोत इकट्ठा करने होंगे।
बम्बई के सभा भवन में जहां गर्मी के मारे दम घुटा जा रहा था गांधीजी ने 8 अगस्त 1942 को आधी रात के फौरन बाद अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अपने अनुयायियों को लड़ाई के मैदान में कूद पड़ने के लिए ललकारा। उनका स्वर शांत और संयत था। उन्होंने जो शब्द कहे उनमें इतना आवेश और भावावेग था कि वे शब्द अजीब लग रहे थे। मैं दो शब्दों की सलाह देता हूँ- 'करो या मरो'। गाँघी चाहते थे कि अपने इन शब्दों पर अमल करने वाले वे पहले व्यक्ति हों।
‘करो या मरो’ की अपनी तत्परता में गाँघीजी ने स्वराज की ख़ातिर अपनी मृत्यु को असमय आमन्त्रण दिया। ईश्वर की मर्जी के मुताबिक़ किसी भी क्षण अहिंसक ढंग से प्राण त्याग देने के लिए गाँघीजी ने पूरे जीवन प्रार्थना की थी और खुद को तैयार किया था। लेकिन अगस्त 1942 में, गांधीजी ने महसूस किया कि स्वाघीनता आन्दोलन ब्रिटेन के साथ एक गतिरोघ की दिशा में बढ़ रहा है, तो उनको लगा उनके जीवन के उत्सर्ग का समय आ गया है।
गांधीजी को 1936 में लिखी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की 'राम की शक्ति पूजा' कविता अनायास याद आती है जिसमें लिखा है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम को एक समय ऐसा लगता है कि वे अन्याय रूपी रावण से युद्ध हार चुके हैं। क्योंकि राम को ऐसा लग रहा है कि जिधर अन्याय है उधर ही सारी शक्ति है। अगर पूरी शक्ति अन्याय के साथ संचित है तब युद्ध कैसे जीता जाए? और राम को यह कहा जाता है कि जाओ और तुम युद्ध का मैदान छोड़ दो और सारे उपकरण इकट्ठा कर फिर से युद्ध के मैदान में वापस डटकर शत्रु का डटकर मुकाबला करो।
8 अगस्त को बम्बई में भारत छोड़ो आंदोलन का आगाज करते हुए महात्मा गांधी ने कहा-
''यह एक छोटा-सा मन्त्र है जो मैं आपको दे रहा हूँ। इसको आप अपने दिलों में उतार लीजिए और इसे आपकी एक-एक साँस में व्यक्त होने दीजिए। यह मन्त्र हैः ‘करो या मरो’। हम या तो हिन्दुस्तान को आज़ाद करें या इसकी कोशिश में अपनी जान दे दें...आज के बाद से हर मर्द और औरत अपने जीवन के एक-एक पल को इस बोघ के साथ जिये कि वह सिर्फ आज़ादी हासिल करने की ख़ातिर खा या जी रहा/रही है और, अगर ज़रूरत पड़ी तो इस लक्ष्य को हासिल करने की ख़ातिर मर जाएगा /जाएगी।’'
उन्होंने कहा कि मुझे तुरन्त आजादी चाहिए। आज ही रात को , अगर हो सके तो भोर होने से पहले। लेकिन भोर होने से पहले गांधीजी को जो मिला वह आजादी नहीं थी, बल्कि अंग्रेजों की जेल में जाने का एक और निमंत्रण। गांधीजी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद सहित कांग्रेस के सभी नेता जेल में डाल दिये गए।
गांधीजी व कांग्रेस नेताओं के जेल जाने के बाद राजनीतिक रंगमंच खाली हो गया। कांग्रेस को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया। मुस्लिम लीग व हिन्दू राजनैतिक संगठनों के लिए ये अच्छे दिन की तरह आये क्योंकि इधर कांग्रेस के नेता जेलों में सड़ रहे थे उधर उधर मुस्लिम लीग व हिन्दू राजनीतिक संगठन अंग्रेजों का समर्थन कर उनमें अपनी पूरी स्वामी भक्ति प्रदर्शित कर रहे थे।
गांधीजी भारत छोड़ो आंदोलन में आखिरी बार जेल गए। उन्होंने अपने जीवन में 2338 दिन जेल में बिताए। 249 दिन दक्षिण अफ्रीका में 2089 दिन भारत में। इस बार उन्हें यरवदा जेल में नहीं रखा गया अपितु आगा खां महल में रखा गया। जेल जाने के पांच महीने बाद आगा खां महल में गांधीजी ने 21 दिन के बिना पानी के आमरण अनशन की घोषणा की। अंग्रेजों ने भी इस बार गांधी के सामने न झुकने की ठान ली। लेकिन 22 फरवरी 1944 को महाशिवरात्रि के दिन शाम सात बजे जब मंदिरों में घण्टे बज रहे थे,आगा खां महल में अचानक सन्नाटा पसर गया, उनकी पत्नी कस्तूरबा का निधन हो गया। इस बार गांधी की जान और जिद बचाने उनकी पत्नी आ गईं। अंग्रेजों को गांधीजी को तुरन्त छोड़ना पड़ा। आगा खां महल में ही कस्तूरबा का अंतिम संस्कार गांधीजी द्वारा मुखाग्नि देकर किया गया।
गांधीजी एक बार फिर बच गए शायद उनकी मृत्यु अंग्रेज सरकार, अंग्रेज सेना और अंग्रेज पुलिस द्वारा नहीं लिखी थी। वे आजाद भारत में ही मारे गए एक विक्षिप्त हिन्दू के द्वारा।
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